रानीगंज गुरु तेग बहादुर जी के 349 शहादत दिवस को लेकर रानीगंज गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर शिशु बगान मैदान मे धर्म सभा और जुलूस का आयोजन किया गया।
गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा की ओर से गुरबाणी कीर्तन कथा लंगर एवं नगर कीर्तन , निकली गई। शिशु बागान मैदान से शोभा यात्रा केसाथ कीर्तन के साथ नगर का परिक्रमा करते हुए गुरुद्वारा में आकर संपन्न हुआ। नगर में भव्य स्वागत जगह-जगह पर की गई।
प्रबंध कमेटी की ओर से सरदार बलजीत सिंह बघा कार्यक्रमों का उद्देश्य गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए उनके योगदान को याद करना है।
अमृतसर के प्रवक्ता एवं सिख धर्म के पचारक डॉक्टर सुखप्रीत सिंह ने कहा कि गुरु तेग बहादुर सिंह, सिख धर्म के नवें गुरु, ने अपनी शहादत धर्म और मानवता की रक्षा के लिए दी। उन्होंने हिंदू धर्म, विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों, की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
17वीं शताब्दी में, मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने इस्लाम को जबरन थोपने की नीति अपनाई। उसने कश्मीरी पंडितों और अन्य गैर-मुसलमानों पर इस्लाम स्वीकारने या मृत्यु का सामना करने का दबाव डाला। कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर जी से मदद की गुहार लगाई।
गुरु तेग बहादुर जी ने औरंगज़ेब को चुनौती दी कि अगर वे गुरु जी को इस्लाम में परिवर्तित कर सकते हैं, तो बाकी लोग स्वयं ही धर्मांतरण कर लेंगे। इसके परिणामस्वरूप, गुरु जी को गिरफ्तार कर लिया गया और दिल्ली के चांदनी चौक में उनकी शहादत दी गई।
गुरु जी ने सभी धर्मों के प्रति समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की वकालत की। उन्होंने अन्याय और धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचार का विरोध किया।गुरु जी ने सिख धर्म के मूल सिद्धांतों – न्याय, सत्य और मानवता की रक्षा के लिए प्राण दिए।
गुरु तेग बहादुर की शहादत ने न केवल सिख धर्म बल्कि पूरे भारत के लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के महत्व का संदेश दिया। इसीलिए उन्हें “हिंद की चादर” (भारत की रक्षा करने वाला) कहा जाता है। प्रबंध कमेटी की ओर से सरदार रविंद्र सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया और उन्होंने विशेष कर रानीगंज वासियों के साथ-साथ अग्रहरि समाज, मॉर्निंग वॉकर, मारवाड़ी समाज, के प्रति आभार प्रकट किया जिन्होंने नगर कीर्तन में शामिल भक्तों का स्वागत किया।